ख़ामोश मोहब्बत - 1

पुरानी दिल्ली की गलियों में एक हवेली थी — *हवेली-ए-नूरजहाँ*। वक़्त की गर्द ने इसकी दीवारों को ज़रूर थका दिया था, लेकिन इसकी खिड़कियों से अब भी मुहब्बत झांकती थी। उसी हवेली में रहती थी *ज़ैनब* — खामोश सी, किताबों से मोहब्बत करने वाली लड़की। उसकी आँखों में एक समंदर था — गहरा, मगर शांत।ज़ैनब का सबसे पसंदीदा वक़्त था शाम का, जब वह हवेली की छत पर बैठकर किसी पुरानी उर्दू किताब में डूबी होती और कभी-कभी अपने अब्बा की छोड़ी हुई डायरी पढ़ती, जिसमें शायरी के लफ़्ज़ अब भी महकते थे।एक रोज़ वह पुरानी किताब की तलाश में