काला गुलाब - भाग 3

भाग3: अनु ने गहरी सांस ली और खामोश हो गई। उसकी आंखों में सवाल तैर रहे थे, लेकिन जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। ट्रेन अपनी रफ्तार से पहाड़ों की तरफ बढ रही थी। बाहर का नजारा बदल चुका था। हरी _भरी घाटिया धुंध से ढकी हुई थी। लेकिन अनू का दिल का भोज कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसने मन ही मन सोचा_"क्या सच में... मैं राज को बुला नहीं पा रही हुं ? ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से चल रही थी। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था। और खिड़की से आती सुनहरी