संस्कृति का पथिकपार्ट -3भीमबेटका और सांची की आध्यात्मिक यात्रा के बाद, जब मैं वापस भोपाल की ओर लौट रहा था, तो दिन ढल चुका था। सड़कें अब शांत हो रही थीं, हल्की ठंडी हवा चेहरे से टकरा रही थी और आसमान पर रात के सितारे अपनी चमक बिखेर रहे थे। मन में एक अजीब-सी संतुलन और शांति थी — जैसे दिनभर की यात्रा ने केवल शरीर को थकाया नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी संवारा हो।भोपाल पहुँचते ही सबसे पहले मेरी नजर पड़ी बड़ा तालाब की ओर। इस शहर की खूबसूरती यही है कि आधुनिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का