पार्ट-2संस्कृति का पथिकभोजपुर से निकलते समय सूरज अपनी सुनहरी किरणों से आसमान को ऐसे रंग रहा था मानो शिव स्वयं अपनी जटाओं से आशीर्वाद बरसा रहे हों। मन अभी भी भोजेश्वर के मंदिर की निस्तब्धता में था — उस विराट शिवलिंग की छवि आँखों में बस चुकी थी।कार ने जैसे ही भोजपुर की घाटियों को छोड़ा, सड़कें धीरे-धीरे जंगलों और पथरीली चट्टानों की ओर मुड़ने लगीं। मेरी अगली मंज़िल थी "भीमबेटका"।यह स्थान यहाँ से लगभग 30 किलोमीटर दूर, विंध्य पर्वत की तलहटी में स्थित है। भीम बेटका का नाम का स्मरण होते ही महाभारत के भीम की छवि मेरे दीमाग