सत्य मीमांसा - 2.5

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जो हमारी उपस्थिति अनुभव हो रही हैं, वहीं तो सर्वशक्तिमान के प्रभाव की उपस्थिति का अनुभव हैं, उसकी उपस्थिति, हम उसके प्रभाव की उपस्थिति से ही महसूस कर सकते हैं अन्यथा उसका ओर छोर जानना तो संभव हैं पर पहचानना असंभव, हाँ हममें जितना सामर्थ्य बढ़ते जाता हैं हम उसकी उपस्थिति, उसके प्रभाव की उपस्थिति मतलब कि गुणवत्ता और मात्रा नाप सकते हैं मगर जिस अहम के आकार से उसे नापेंगे, जिस अहम के आकार में उसे नापेंगे, जितना अधिक नापना होगा, उतना ही बड़ा या स्पष्ट हमारे अहम का आकार होगा, बाहरी और आंतरिक इंद्रियों यानी ज्ञान के द्वारों