रात की पहली पहर। तारे जैसे जले हुए चावल हों—छोटे, सफ़ेद, नेक। हवा में धान के कटने की गंध। दूर कहीं बैलों की घँटी। बबलू और धर्म पूरब वाली गली से निकले। बबलू के हाथ में टहनी, जिसे वह आड़ी-तिरछी रेखाओं में घुमा रहा था—जैसे कोई अजीब-सा आलाप हो। धर्म ने उसका बाजू पकड़ा—“शोर को शोर मत कर, शोर को चुप सुन। रात का कान पेड़ के ऊँचे भाग में लगा होता है।”“मतलब?” बबलू ने बालसुलभ चाव से पूछा।“मतलब यह कि अगर कोई परिंदा सोते-सोते हड़बड़ाता है, तो समझो हवा नहीं, आदमी गुज़रा है। अगर कुत्ते एक साथ नहीं, अलग-अलग