स्याही के शब्द - 2

11-️ तलाश में उलझनरिश्तों की गहराई भूलकर,बंधन की मर्यादा तोड़कर,वो स्क्रीन पर सज रही है—मानो ज़िंदगी का सचअब कैमरे की झिलमिलाहट में ही छिपा हो।सोशल मीडिया के मंच परफ़ूहड़ता का तमाशा बिक रहा है,जहाँ सादगी मज़ाक बन चुकी है,और उघाड़ापन ही "आधुनिकता" कहलाता है।कभी बहन, कभी बेटी, कभी माँ—इन रूपों की गरिमा कहाँ खो गई?किस तलाश में है वो?क्या कुछ पल की तालियों मेंउसकी आत्मा की प्यास बुझ जाएगी?शायद पहचान की भूख है,शायद अकेलेपन की चुभन है,या शायददुनिया के शोर मेंअपने ही मौन को दबाने का प्रयास।पर क्या सचमुच यही तलाश है—कि रिश्तों की मर्यादाएँ गिरवी रखकरवह वर्चुअल तालियों का