बहुत पुरानी बात कहने में स्वतंत्र का लहजा स्वतंत्र

बहुत पुरानी बात कहने में स्वतंत्र का लहजा स्वतंत्र                  रामगोपाल भावुक   डॉ. स्वतंत्र कुमार सक्सेना की नई कृति पढ़ने को मिली। देखा किस विषय पर आपने कलम चलाई है, कृति में विषय नदारत था। यह उपन्यास है अथवा संस्मरण। कथानक पर दृष्टि डाली मैं नाम का पात्र सामने आ गया। चलो पता तो चला कि यह उन्होंने अपना संस्मरण लिखा है।  डॉ. स्वतंत्र कुमार सक्सेना एक सरल व्यकितत्व के धनी हैं। सरलता उनके व्यतित्व में कूट कूट का भरी है। वे जैसे दिखते हैं वे बैसे ही हैं। उनमें बनावटीपन का अभाव है। उन्हें जो बात कहना