1-️ बीमार मन की स्मृतियाँबीमार मन की खिड़कियों परस्मृतियों की धूल जमी रहती है,कभी कोई हंसी की आहटउस धूल में उँगलियाँ फेर जाती है,और कभी कोई रोष,शांत कोनों में फफूँदी बनकर उग आता है।स्मृतियाँ—वे अधूरी कविताएँ हैंजो लिखी तो गईं,पर कभी पूरी न हो सकीं।वे टूटे हुए सपनों की किरचें हैंजिन पर चलते-चलतेमन के तलवे छिल जाते हैं।बीमार मन जानता हैकि समय ही एक चिकित्सक है,पर समय की दवाधीरे-धीरे असर करती है—मानो गहरे कुएँ में डालीएक-एक बूंद पानी।कुछ स्मृतियाँफफोलों जैसी हैं—छूने पर दर्द देती हैं,और कुछ,जैसे बुझ चुकी अग्नि की राखजो बस उँगलियों परधूसर निशान छोड़ जाती है।बीमार मन फिर