⏳ अंधेरे की दस्तकदरवाज़े के पास खड़ा राहुल जैसे पत्थर बन गया था।दीवारों से निकलती ठंडी हवा उसके चेहरे को छूकर फुसफुसा रही थी —"मत जाओ… वापस लौट जाओ…"लेकिन उसके भीतर कुछ और था — एक खींचाव, जो उसे दरवाज़े के पार खींच रहा था।उसने काँपते हाथों से मशाल उठाई और दरवाज़े पर उकेरे शब्दों को पढ़ा –> “जहाँ अंत लिखा है, वहीं से शुरुआत होती है।”राहुल के होंठों से बस इतना निकला –“तो फिर… यही शुरुआत होगी।”उसने दरवाज़े को धक्का दिया।कर्र… कर्र… कर्र…भारी दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा और भीतर से काली धुंध का झोंका बाहर आया।---️ अंदर की रूहेंदरवाज़े