दर्द से जीत तक - भाग 6

गाँव के जलसे में जब सबने बधाई दीतभी कुछ ज़ुबानें ज़हर भी उगल गईं।अरे, याद है न? यही तो था जो गलियों में पागल की तरह ‘एंजल, एंजल’ पुकारता फिरता था।भाई के पैसों पर पलकर बड़ा बन रहा है। अपने दम पर क्या कर पाया?”“पढ़ाई तो ठीक है, पर औक़ात याद रखो। गाँव से निकलकर बड़ा आदमी बनना इतना आसान नहीं।”ज़हन सब सुनता रहा।उसके होंठ बंद थे, पर आँखें नम हो गईं।भीड़ में ठहाके गूंजे, मगर किसी ने उसके आँसुओं की तरफ़ ध्यान नहीं दिया।उस पल उसका सीना जैसे पत्थर से दब गया हो।रात को, जब सब सो गए,ज़हन छत