फ्लैट की धुंधली रोशनी मानो रहस्यों की गवाही दे रही थी। दीवारों पर टंगे पुराने कैलेंडर और टूटी खिड़की से आती ठंडी हवा माहौल को और भी भयावह बना रही थी।दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला।अंधेरे में दो साये लंबाई पकड़ते हुए कमरे में दाख़िल हुए। रोशनी जैसे ही उन पर पड़ी, साफ़ हो गया—वे सहदेव और विक्रम थे। दोनों के चेहरे पर कठोरता और आँखों में चमक थी, मानो आज जवाब लेकर ही बाहर निकलेंगे।कमरे के बीचोंबीच चार आदमी बंधे पड़े थे। उनके हाथ-पाँव रस्सियों से कसकर बाँध दिए गए थे और होंठों पर मोटी टेप चिपकाई हुई थी। यही वे गुंडे