हॉस्पिटल के उस कमरे में जहाँ अनाया का कंगन पहली बार उसकी हथेली में आया था, वहीं से आरव की ज़िंदगी ने नया मोड़ लिया। वह अक्सर सोचता,"क्यों बचा लिया मुझे… जब मेरा सब कुछ मुझसे छिन गया?"कभी-कभी रातों में वह खिड़की से बाहर आसमान को देखता और फुसफुसाता,“अनाया, अगर तू होती, तो कहती कि भागना हल नहीं है। शायद तू कहती कि अपने दर्द को ताक़त बना।”उस दिन से उसने अपने आँसुओं को कागज़ पर उतारना शुरू किया। डायरी के हर पन्ने में अनाया की यादें थीं,पर धीरे-धीरे वही पन्ने उसके रिसर्च के नोट्स में बदलने लगे।कैंपस की लाइब्रेरी