क्यों हो गए बड़े-बचपन सुहाना था

शाम का समय था। खिड़की के बाहर हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। मैं ऑफिस से थककर लौटा ही था कि अचानक टेबल पर रखी पुरानी डायरी नज़र आ गई। धूल से ढकी उस डायरी को उठाया तो जैसे अतीत के पन्ने अपने आप खुलने लगे। उसमें बचपन की लिखी छोटी-छोटी बातें, दोस्तों के नाम, खेलों की यादें और मासूम सपनों की तस्वीरें सजी थीं। आँखें नम हो गईं और दिल से बस यही सवाल निकला – “क्यों हो गए बड़े… बचपन कितना सुहाना था।”बचपन का हर पल किसी खज़ाने से कम नहीं था। सुबह होते ही नींद खुलते ही