अधूरी नफ़रत और अनचाहा खिंचावबारिश अब पूरी तरह थम चुकी थी, लेकिन आसमान में बादल अब भी बिखरे थे, जैसे कोई कहानी पूरी होने से पहले ही ठहर गई हो। सड़कें गीली थीं, पानी के छोटे-छोटे कतरे पत्तों से टपककर नीचे गिर रहे थे, और ठंडी हवा वातावरण को और भी सिहरन भरा बना रही थी। लेकिन इस वक्त, बाहर के मौसम से कहीं ज्यादा तूफान हर्षवर्धन के अंदर उठ रहा था।वह बरामदे में खड़ा था, हवा के तेज झोंके उसके उलझे हुए बालों से खेल रहे थे, लेकिन उसकी आँखें वहीं अंदर टिकी थीं—सोफे पर गहरी नींद में डूबी