वो खाली बेंच

शहर के बीचों-बीच बने पुराने पार्क में एक बेंच थी, जिस पर कोई ज़्यादा देर बैठना पसंद नहीं करता था। लकड़ी की पट्टियाँ घिस चुकी थीं और लोहे के पायों पर जंग लग चुका था। मगर अनिल के लिए वह बेंच किसी मंदिर से कम नहीं थी।हर शाम ऑफिस से थककर लौटते समय अनिल वहीँ बैठता, अपनी डायरी खोलकर कुछ पंक्तियाँ लिखता और फिर चुपचाप चला जाता। लोग अक्सर सोचते, "इतनी भीड़-भाड़ वाले शहर में यह आदमी अकेला क्यों बैठा रहता है?" मगर किसी ने उससे पूछा नहीं।असल में यह बेंच उसकी और सुषमा की यादों से भरी थी। पाँच