1931 - देश या प्रेम -- सत्य व्यास

देश की आज़ादी के लिए ना जाने कितने अनाम या कम जाने गए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने घर-परिवार छोड़ा और गृहस्थ जीवन का मोह त्याग बलिदान की राह पर चलकर अपनी कुर्बानियाँ दीं। तब कहीं जा कर बड़ी मुश्किल से हमें यह दिन देखने को नसीब हुआ कि हम सगर्व अपने देश के स्वतंत्रता दिवस को मना पाते हैं। मगर आज के संदर्भ में बहुत से लोग इन कुर्बानियों, इन बलिदानों को इस हद तक बिसरा चुके हैं कि उनके लिए स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस का मतलब महज़ एक छुट्टी भर रह गया है। इसी छुट्टी के दिन में