भाग 2 | अध्याय :5 रचना:बाबुल हक़ अंसारी “वो आख़िरी रात”पिछले अध्याय से… युवराज ने धीमी लेकिन ठंडी आवाज़ में कहा—“उस रात का सच सिर्फ़ हवेली जानती है। और अब… तुम्हें भी जानना होगा।”युवराज ने काँपते हाथों से डायरी का एक पन्ना खोला।उस पन्ने के किनारों पर धब्बे थे, जैसे उन पर आँसू गिरे हों या फिर खून के निशान जम गए हों।नायरा ने पास झुककर पढ़ा।"आज हवेली की हवाओं में कुछ अलग है।श्रेया ने कहा कि आज