अथर्व गाँव के बीच खडा था. सबकी नजरें उसी पर थीं, जैसे वह कोई अजीब सा तमाशा हो. बूढा आदमी, जो शायद इस छोटे से गाँव का नेता था, अब भी उसे ऐसे घूर रहा था जैसे किसी पल भाला फेंककर उसे वहीं खत्म कर देगा. अथर्व ने मन ही मन सोचा, भाई, अगर बातों से काम बनता तो कब का बना लेता, पर यहाँ तो सबको practical चाहिए। उसने गहरी साँस ली और धीरे- धीरे उस पुराने, भारी- भरकम हल की तरफ बढा. वो हल सच कहें तो औजार से कम और लकडी का टूटा- फूटा लट्ठा ज्यादा लग