अब आगे..............वो पेड़ विवेक को फल खाने के लिए देता है लेकिन विवेक उस पर को लेने से मना कर देता है.... " नहीं मुझे कोई भूख नहीं लगी है न मुझे थकान है , पूछने के लिए शुक्रिया...अब मैं चलता हूं...."विवेक जल्दी से उस पेड़ से आगे बढ़ जाता है और गहरी सांस लेते हुए कहता है...." मुझे अर्लट रहना चाहिए , मयन देव ने कुछ भी लेने से मना किया है , , ओह इस तारे का एक हिस्सा बूझ गया , , जल्दी कर विवेक.... लेकिन ये महाकाल मंदिर है कहां , इतने विरान से रास्ते में