चैप्टर 49 शिवाय बच्चों को सूलाकर ,छत पर आकर खड़ा होता है इस वक्त वह ठंडी रात में पूर्णिमा के चांद को बड़े गौर से देख रहा था। उसके आंखों में बहुत सारे सवाल थे, शिकायत थे, पर खुद के लिए?उसकी आंखों में नमी थी पर उसने अपने आंखों में से आंसुओं को बहाने नहीं दिया। उसके आंखों के सामने एक-एक कर कर बच्चों के साथ, परिवार के साथ, दोस्तों के साथ बिताए हुए हर पल याद आ रहे थे। तभी उसके पीछे कोई आकर खड़ा होता है। "आखिर कब तक शिवाय ,हम लोग इतना बड़ा सच को सबसे छुपाते रहेंगे की आरोही