हाथ मेरा थाम लो

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वह नदी के किनारे अकेली बैठी थी। वह किसी विचार में खोई हुई थी। उसके सामने साबरमती का पानी तेज़ी से बह रहा था। अभी-अभी ज़ोरदार बारिश हुई थी और ऊपरी इलाकों से निकला पानी बह रहा था। वह ठंडी लहरों का आनंद ले रही थी।किसी के कदमों की आहट पास आई। "क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ?" यह एक सामान्य अनुरोध था, एक पुरुष की आवाज़।उसने मुस्कुराते हुए ऊपर देखा। उसने अपनी नज़रें एकाग्र करने की कोशिश की। उसकी ही उम्र का एक युवक। धुंधली दृष्टि से उसे एक जींस और एक पीली टी-शर्ट दिखाई दी। उस पर स्माइली जैसा