भग:15 रचना:बाबुल हक़ अंसारी "साज़िश की आग और टूटते सब्र की आहट" पिछले खंड से… "अब खेल और ख़तरनाक होगा…" नकाबपोशों की चाल रात के अंधेरे में वही नकाबपोश फिर लौटे।इस बार उनके हाथों में केवल डंडे या बोतलें नहीं थीं, बल्कि बंदूकें थीं।गली के सन्नाटे में उनकी परछाइयाँ और डरावनी लग रही थीं। एक ने फोन पर किसी से कहा —"कल सुबह का अख़बार इन बच्चों के खून की ख़बर छापेगा। पांडुलिपि हमें हर