दादाजी और गौरैया

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आह... कुछ नहीं बदला , कुछ भी नहीं । सबकुछ वैसा ही है बल्कि और भी गाढ़ापन आ गया है इस हरियाली में । बस की खिड़की से सिर टिकाए मैं प्यारे उत्तराखण्ड के सीढ़ीनुमा खेतों को निहारे सोच रही थी ।अचानक ड्राइवर ने ब्रेक दबाया और आवाज आई ,सब लोग चाय पानी पी लो । मैं बस से उतरी, चारों ओर नजरें दौड़ाई और जितनी दूर पहाड़ी तक नज़र पहुंच सकती थी देखा । पलकें झपकाई तो आंख से एक आंसू टप्प से नीचे गिरा । खुद को समझाया की सूरज से नजरें मिलाने का नतीजा है ये, मगर