सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 19

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             भाग 2 |अध्याय 4          रचना:रचना:बाबुल हक लेखक            “धुंध में लिपटा अजनबी”पिछले अध्याय से… कमरे में धुंधलके के बीच, एक परछाईं खड़ी थी—धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ते हुए।उस परछाईं की आवाज़ आई—“तुम्हें यहाँ आना ही था… क्योंकि ये अधूरी दास्तान अब तुम्हारे बिना मुकम्मल नहीं होगी।”नायरा के हाथ काँप रहे थे। उसकी उँगलियाँ अभी भी उस पुराने लिफ़ाफ़े को थामे थीं।“तुम… कौन हो?” उसने हिचकते हुए पूछा।परछाईं धीरे-धीरे रोशनी के क़रीब आई।वो एक लंबा, दुबला-पतला नौजवान था। उसकी आँखों में गहराई थी, जैसे उनमें सदियों का दर्द छिपा