भाग:14 रचना: बाबुल हक़ अंसारी "आग, साज़िश और आर्या का फ़ैसला". पिछले खंड से… "मेरे पापा की कलम को आग में नहीं, लोगों के हाथों में जलना है।"नकाबपोश गुंडों का वारसुबह का सूरज अभी ठीक से उगा भी नहीं था कि अनया के घर के बाहर धमाके की आवाज़ गूँजी।नकाबपोश गुंडों ने घर की दीवार पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगाने की कोशिश की।पड़ोसी चीख उठे —"आग… आग!"अनया दरवाज़े पर भागी।पांडुलिपि उसके हाथ में