में और मेरे अहसास - 134

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उल्फ़त की चादर कमसिन कली उल्फ़त की चादर ओढ़े निकल पडी हैं l जहां भी जरा साया दिखा वहीं पर वो छलक पडी हैं ll   नशीले रंगीले सुहाने खूबसूरत मौसम में बहकर l बिना बादल की बदली जैसे एकदम बरस पडी हैं ll   डूब गये प्यारी मदहोशी सुरत को देख ऐसे में ही l जरा से हसीं मजाक को संजीदगी समझ पडी हैं ll   कई दिनों के बाद मुलाकात हुई तो काबु खो दिया l और एकाएक ही बातों ही बातों में गरज़ पडी हैं ll   कभी तबस्सुम में था, और वो अरमान पूरे हुए भी