अरुण जेल की अँधेरी कोठरी में बैठा था।उसके हाथ में जंग लगे हथकड़ी के निशान थे, और आँखों में वो दर्द, जो सिर्फ़ बेगुनाही झेलने वाले इंसान की आँखों में दिखता है।वो दीवार से सिर टिकाकर सोच रहा था—“क्या सच में मोहब्बत पाप है? रिया को चाहने की इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी मुझे?”हर रात उसकी आँखों में रिया की मुस्कान कौंधती, और फिर उसी के साथ उसके पिता संजय मेहरा की लाश का खून-भीगा चेहरा भी।अरुण ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उसे क़ातिल बनाकर पेश किया जाएगा।जेलर शर्मा की शक़ की निगाहजेल का जेलर, शर्मा, कड़ा