रात की ठंडी हवा खिड़की से भीतर आ रही थी। दीपक ने अपनी पुरानी डायरी खोली, जिसके पन्नों में अनगिनत अधूरी बातें, अधूरे ख़्वाब और दबे हुए आँसू छिपे थे। आज उसने तय किया था कि वह सब कुछ लिख देगा, जो कभी कह नहीं पाया।उसका कमरा किताबों और पुराने पत्रों से भरा हुआ था। एक मेज़ पर धूल से ढका हुआ फोटो-फ़्रेम रखा था, जिसमें मुस्कुराती हुई आर्या थी। वही आर्या, जिसकी हँसी से दीपक की ज़िंदगी रोशन हो जाती थी। लेकिन वक़्त ने दोनों को अलग कर दिया था।दीपक ने काग़ज़ पर कलम चलाई:"प्रिय आर्या, शायद ये मेरा