छह महीने बाद…सोनिया की बर्थडे पार्टी, ऑफिस के रोमांचक दिन और हल्की-फुल्की नोक-झोंक अब पीछे छूट चुके थे। वक्त की रफ़्तार ने सबको अपनी-अपनी राहों में उलझा दिया। लेकिन ज़िंदगी कभी भी सिर्फ़ काम और हंसी-ठिठोली तक सीमित नहीं रहती। उसमें ऐसे मोड़ आते हैं जो सब कुछ बदल देते हैं।सहदेव के लिए यह मोड़ अब सामने था।रात गहरी थी। सहदेव सुनसान सड़क पर दौड़ रहा था। उसके माथे से खून बह रहा था, और कंधे पर गहरी चोट से खून रिस-रिस कर शर्ट भिगो रहा था। पीछे से तीन-चार नकाबपोश उसका पीछा कर रहे थे। सबके हाथों में बंदूकें