अनकही दास्तां (शानवी अनंत) - 7

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"जब मोहब्बत विदाई मांगती है.."कुछ कहानियाँ अधूरी नहीं होतीं..वो पूरी होकर भी अधूरी ही लगती हैं।क्योंकि उनका अंत 'साथ' में नहीं,बल्कि 'बिछड़ने' में लिखा जाता है।अनंत और शानवी की कहानी भी अब उस मोड़ पर आ चुकी थी --जहाँ एक तरफ यादें थीं, और दूसरी तरफ.. अंतिम विदाई।उस शाम की बात है --दिल्ली की सड़कों पर धूप ढल रही थी,और मैं अकेला एक बेंच पर बैठा था।हाथ में वही पुरानी डायरी..जिसके हर पन्ने में बस एक ही नाम लिखा था --शानवी।वो आज मुझसे आख़िरी बार मिलने वाली थी।हाँ.. उसने कहा था --"अनंत, मैं तुमसे एक बार मिलना चाहती हूं,शायद आख़िरी