खामोश हवेली की नई परछाईरीया शर्मा, राहुल वर्मा और काव्या मिश्रा के कदम अब धीरे-धीरे उस हवेली की ओर बढ़ रहे थे, जहाँ से उनकी अधूरी किताब की गुत्थी शुरू हुई थी। हवेली का दरवाज़ा सदा की तरह जर्जर था, जैसे बरसों से किसी ने उसे खोलने की हिम्मत न की हो। अंधेरे में चारों तरफ़ चुप्पी और हल्की सिहरन थी। हर दीवार की दरारें, हर टूटा फर्श ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह उनसे कोई छुपा हुआ संदेश कहना चाहता हो।काव्या ने फुसफुसाया –“हवेली में अब बहुत समय से कोई नहीं आया। पर यहाँ की परछाइयाँ हर