खामोश परछाइयाँ - 4-5

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रिया ने डायरी का आख़िरी पन्ना पढ़ने के बाद तय कर लिया कि उसे उस पुरानी हवेली तक जाना ही होगा। हवेली शहर के बाहरी इलाक़े में थी, जंगल के बीच, जहाँ लोग जाते हुए डरते थे।शाम का समय था जब रिया वहाँ पहुँची। टूटा हुआ गेट, झाड़ियों से घिरी राह और हवेली की दीवारों पर चढ़ी काई… सब देखकर उसकी रूह काँप गई।जैसे ही उसने भीतर क़दम रखा, दरवाज़ा अपने आप पीछे से बंद हो गया। अंदर घुप अंधेरा और सन्नाटा था। हवा में नमी और सड़ांध का अहसास।अचानक, हवेली की दीवारों से अजीब-सी फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं—"रिया… वापस