रूहाना घबरा गई।उसने आंखें मलीं, फिर से आईना देखा… पर अब आईना खाली था।सिर्फ उसका चेहरा, थोड़ी बिखरी ज़ुल्फ़ें, और काँपती पलकों का अक्स।"क्या हो रहा है मुझे?"उसने धीरे से फुसफुसाया।आईने से अब भी हल्की सी गंध आ रही थी —जली हुई रेशम की… या शायद किसी पुराने जोड़े की।वो पीछे मुड़ी, पर कमरा खाली था।खिड़की आधी खुली हुई थी और बाहर रात जैसे पूरी आँखें गड़ाए बैठी थी।रूहाना ने दरवाज़ा खोला… बाहर कदम रखा —हवेली की लंबी वीरान गलियों से उसकी पायल की आवाज़ गूंज उठी।धप… छन्न… धप… छन्न…उधर गांव में —अदित्य अब भी उस कागज़ को देख रहा