सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 18

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               रचना: बाबुल हक़ अंसारी        अध्याय 3: “सफ़र का पहला इम्तिहान”पिछले अध्याय से…  “लखनऊ… वही शहर जहाँ से उसकी मोहब्बत की शुरुआत हुई थी… और शायद वहीँ उसका अंत भी लिखा गया।”सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थी।लेकिन नायरा की आँखों में नींद नहीं थी।वो पूरी रात उस पुराने टिकट को देखती रही, जैसे उसमें ही उसके सवालों के जवाब छिपे हों।तीसरे दिन, जब ट्रेन लखनऊ जाने के लिए प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी थी, नायरा ने भारी कदमों से उसमें प्रवेश किया।बैठते ही उसे महसूस हुआ जैसे