मोहब्बत : एक अधूरी दास्तान

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प्रस्तावना बरसात की एक ठंडी शाम।पुरानी लाइब्रेरी की खिड़की के पास बैठा रुहान धीरे-धीरे पन्ने पलट रहा था। उसके सामने वही किताब थी, जो कभी उसने और ज़ारा ने साथ पढ़ी थी। पन्नों पर नमी थी, शायद बारिश की नहीं… बल्कि उसकी आँखों की।वक़्त बीत चुका था, लेकिन मोहब्बत आज भी वहीं की वहीं ठहरी हुई थी।उसकी ज़िंदगी किताबों से भरी थी, लेकिन दिल के पन्ने अब भी खाली थे।चैप्टर 1 – पहली मुलाक़ातकॉलेज की लाइब्रेरी में सन्नाटा था।रुहान अपनी आदत के मुताबिक़ कोने की सीट पर बैठा एक मोटी-सी नॉवेल पढ़ रहा था। तभी किसी ने पास आकर धीमी आवाज़