---जयपुर की एक हल्की धूप वाली सुबह थी। जान्हवी खिड़की के पास बैठी थी, अपनी स्केचबुक में एक अधूरी तस्वीर बना रही थी — एक घर, जिसमें दो खिड़कियाँ थीं लेकिन दरवाज़ा नहीं।विराज ने उसके पास आकर कहा: > “अगर हम इस तस्वीर को पूरा करें… तो क्या तुम मेरे साथ एक नाम बाँटना चाहोगी?”जान्हवी ने उसकी आँखों में देखा — > “तुम शादी की बात कर रहे हो?” विराज मुस्कराया: > “मैं साथ की बात कर रहा हूँ — नाम तो बस उसका पता है।”---जान्हवी ने उस दिन दीवार पर एक नई स्केच बनाई — एक लड़की और लड़का, एक ही ब्रश से एक ही