धूमकेतू - 7

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भाग 7 strikers   भभकते लावा की दरारों में एक परछाई हिल रही थी।वो प्रोफेसर गांधी ही था। उसका जला-झुलसा शरीर धीरे-धीरे लावे से energy खींचने लगा। उसकी त्वचा पर चिंगारियाँ दौड़ने लगीं। जैसे ही आग बुझी, वो फिर से खड़ा हो गया—पहले से कहीं ज़्यादा ताक़तवर, उसकी आँखें लाल कोयले जैसी चमक रही थीं।“कहा था ना…” उसकी आवाज़ पिघले लोहें जैसी गूँजी,“मैं कभी हारता नहीं! अजय… रणजीत… अब दोनों का हिसाब बाकी है। मैं हमेशा एक कदम आगे सोचता हूँ। दुनिया मेरी है… और मैं इसका राजा… hahaha!”उसकी हँसी पूरे गुफानुमा लैब में गूँज उठी।--- दूसरी ओर…शाम ढल चुकी