रक्तरेखा - 9

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यह वाक्य सुबह-सुबह ही चंद्रवा गाँव की गलियों में गूँजने लगा था।बच्चों की आँखें नींद से आधी खुली थीं, पर होठों पर मुस्कान थी। औरतें स्नान करके जल्दी-जल्दी घर का काम निपटा रही थीं ताकि समय रहते चौक की ओर निकल सकें। बूढ़े लोग अपने धोती-कुर्ते सँवारकर बरामदे में बैठे थे और उनकी बातें भी बस एक ही ओर घूम रही थीं—मेला।गाँव की गलियों में हर कोई आज कुछ अलग लग रहा था। कच्चे घरों की दीवारें फिर से लिपी गई थीं, दरवाज़ों पर आम के पत्तों की तोरणियाँ बाँधी गई थीं। ढोल-नगाड़ों की थाप सुबह से ही गूँज रही