रक्तरेखा - 8

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मेले से एक दिन पहले, पूरा दिन गांव व्यस्त रहा। औरतें पकवान बनाती रहीं।बच्चे उत्साह से उछलते-कूदते रहे। बुजुर्ग प्रार्थना करते रहे। गाँव की औरतें गीत गा रही थीं, पुरुष ढोलक की थाप पर ताली दे रहे थे और बीच में धर्म खड़ा था — एक साधारण युवक, पर जैसे सबके दिलों की डोर उसी से बँधी हो।वह अपने मन में सोच रहा था —“मेला सिर्फ़ मस्ती नहीं है। ये हमारे दुखों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का वक़्त है। ये सब हँसी-खुशी ही हमें ज़िंदा रखती है। यही सोचा कर वह पंचायत की घटना की बात भूलकर पहले की