रक्तरेखा - 7

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गाँव की चौपाल पर उस सुबह एक अजीब-सी खामोशी थी। पिछली बैठक की हलचल और बहस अब भी हवा में तैर रही थी। लोग जानते थे कि आज निर्णय होना है। कोई हँसी-मज़ाक नहीं, कोई उत्साह नहीं—सिर्फ़ गंभीर चेहरे और गहरी निगाहें।बच्चे भी आज दूर खड़े थे, खेलते नहीं, बस देख रहे थे कि बड़ों के चेहरों पर कौन-सा रंग चढ़ता है। महिलाएँ घरों से झाँक-झाँक कर चौपाल की ओर देख रही थीं। हर घर की साँसें आज पंचायत की चौपाल से बँधी थीं।मुखिया आज और भी सधे हुए अंदाज़ में आया। उसका चेहरा कठोर था, जैसे उसने पहले ही