रात उतर आई थी।चंद्रवा गाँव की सुबह उस दिन कुछ अलग थी। आम दिनों की तरह न कोई खेतों में हल चला रहा था, न ही महिलाएँ चक्की पर बैठकर अनाज पीस रही थीं।गाँव के चौक से लेकर गलियों तक, हर जगह एक अजीब-सा उत्साह तैर रहा था।बच्चों की आँखों में चमक थी, जैसे आज से ही मेले का सपना सच हो गया हो। पूरे चंद्रवा गाँव में जैसे जीवन लौट आया हो।गांव के हर आँगन से जलती हुई चिराइयों की लौ हवा में कांप रही थी। कहीं ढोलक बज रही थी, कहीं गीत गूंज रहे थे पर गांव का