अंश, कार्तिक, आर्यन - 2

(20)
  • 468
  • 108

गौतम सर अपने बेटे देखकर गर्व से भर जाते।अंश में मासूमियत भी थी और जिम्मेदारी भी।उसने पिता की ईमानदारी और सच्चाई का पाठ सीखा।पड़ोस के लोग उसे देखकर कहते—“काश हमारा बच्चा भी अंश जैसा होता।”वक़्त पंख लगाकर उड़ गया।अंश ने हाईस्कूल में टॉप किया।स्कॉलरशिप मिली और उसे  यूनिवर्सिटी में दाख़िला मिल गया।गौतम सर खुश थे… पर उदास भी।बेटा अब उनके पास से दूर जा रहा था।उस रात जब अंश ने यूनिवर्सिटी जाने की तैयारी की, तो गौतम सर ने बस इतना कहा—“बेटा… माँ नहीं है, पर उसकी दुआएँ तुम्हारे साथ हैं।और मैं  हमेशा ह तुम्हारे साथ हूं  ।”अंश ने पिता