अध्याय 1: धड़कनों में कैद ख़ामोशी रचना: बाबुल हक़ अंसारीपिछली दास्तान से… “वो चिट्ठी, जो कभी पूरी न लिखी गई…और वो धुन, जो अब भी अधूरी है।” रात गहरी थी, लेकिन कमरे की खामोशी उससे भी गहरी।मेज़ पर रखी अधूरी डायरी खुली पड़ी थी, उसके पन्नों पर बिखरे शब्द ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने अपने दिल के कतरे काग़ज़ पर टपका दिए हों।नायरा उस डायरी को बार-बार पढ़