दर्द से जीत तक - भाग 3

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उस शाम बारिश नहीं हो रही थी, लेकिन हवा में अजीब-सी बेचैनी थी।मैं खिड़की पर बैठी थी, और जहान मेरे पास।उसकी आँखों में आज कुछ अलग था… जैसे वो कोई राज़ कह देना चाहता हो।“Angel,” उसने धीरे से कहा,“कभी सोचा है, अगर मैं तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए अपना बना लूँ तो?”उसकी बात सुनकर मेरा दिल ज़ोर से धड़क उठा।जैसे मेरे भीतर छुपा सच किसी ने अचानक बाहर खींच लिया हो।मैं चुप रही, मगर मेरी आँखें सब कह गईं।जहान ने मेरा हाथ थाम लिया।उसका हाथ काँप रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ ठोस थी—“मुझे डर नहीं लगता, Angel।ना समाज से, ना दुनिया