पहली रात की सुहागरात - भाग 9

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रूहाना उस दरार को देख रही थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, पर उसकी साँसें अब एक लय में नहीं थीं।पलकों के नीचे डर छुपा था, पर होठों पर वही धीमी मुस्कान अब भी खेल रही थी। धीरे-धीरे वह दरार और खुलने लगी।मिट्टी झड़ रही थी… और दीवार के पीछे कोई कुछ खरोंच रहा था।तभी “ठक… ठक… ठक…” दीवार के भीतर से लगातार तीन दस्तकों की आवाज़ आई। रूहाना एकदम चुप।उसने सिर झुका लिया। और फिर जैसे अचानक किसी ने उसकी गर्दन झटका — उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, साँस तेज़, और होंठों से एक फुसफुसाहट निकली ,“मैं