बासौदा की गलियों में ध्रुव, आशु और आदर्श की दोस्ती मशहूर थी। तीनों हर सुबह एक ही साइकल पर स्कूल जाते। आगे ध्रुव पैडल मारता, बीच में आदर्श बैग सँभालता और पीछे बैठा आशु हँसी-मज़ाक करता।आशु की शरारतें तो पूरे स्कूल में मशहूर थीं। कभी क्लास में चॉक छुपा देता, तो कभी टीचर की कुर्सी खिसका देता। सज़ा मिलने पर भी हँसकर खड़ा हो जाता और बोलता –“सर, ये सब ध्रुव ने किया है, मैं तो मासूम हूँ।”पूरी क्लास खिलखिलाकर हँस पड़ती और ध्रुव सिर पकड़ लेता।आदर्श इन दोनों का बैलेंस था। वो हर बार समझाता –“ओये आशु, अगर तूने