अध्याय 2 : पहली मुलाक़ात – मासूम चेहरा अर्जुन ने अपने जीवन के कुछ साल आत्मचिंतन और एकांत में बिताए थे। गाँव की मिट्टी और शहर की चकाचौंध से दूर, वह किताबों और ईश्वर के सान्निध्य में रहा। उस एकांत ने उसे भीतर से मज़बूत तो किया, लेकिन मन पर पड़े घाव अभी भी हरे थे। उसे लगता कि लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए पास आते हैं, और इसी सोच ने उसे दूसरों से दूर कर दिया।पर जीवन की धारा कभी स्थिर नहीं रहती। अब उसके सामने नई मंज़िल थी—दिल्ली जाकर