---️ भाग 1: फ्लोरेंस की दीवारेंजान्हवी अब फ्लोरेंस में है — एक आर्ट रेजिडेंसी में, जहाँ हर कलाकार अपनी भाषा में रंगों से बात करता है।वो एक पुरानी दीवार पर काम कर रही थी — लेकिन हर ब्रश स्ट्रोक में उसे जयपुर की गलियाँ याद आती थीं।> “मैं यहाँ हूँ… लेकिन मेरी परछाई अब भी उस स्टेशन की दीवार पर है।”--- भाग 2: विराज की चिट्ठीएक दिन उसे एक चिट्ठी मिली — विराज की।> *“मैंने तुम्हारी दीवार को फिर से रंगा है — लेकिन इस बार तुम्हारे बिना। > और हर रंग में तुम्हारी मुस्कान छुपी है।”*जान्हवी ने चिट्ठी पढ़ी —