रंग प्यार के.....

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रजनी के हाथ, बैठक में आगंतुकों के स्वागत व्यवस्था को, तेजी से दुरुस्त करने में जुटे थे तो मन बचपन के आंगन में, दौड़ लगा रहा था। कुमाऊं अंचल के उस छोटे से गावं में, साल भर खेती, घर, परिवार में व्यस्त रहने वाली उसकी मां रुक्मणी, फाल्गुन माह की आंवला एकादशी की मानो प्रतीक्षा में ही रहती थी। इतना तो आम भी नहीं बौराता, जितना उसकी मां होली फाग में, बौरा उठती थी। फिर तो मां को न गोठ में बंधे पशु याद रहते न घर के अंदर मौजूद बेटी, सभी की जिम्मेदारी दादी पर आ जाती। दादी भी खुशी